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हरियाणा के सियासी कुरुक्षेत्र के कौन हैं 10 हीरो और जीरो
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नई दिल्ली:
राजनीति में चुनाव जीतने या हारने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होता है उस चुनाव के माध्यम से जनता तक अपना संदेश पहुंचाना.यही वजह है कि चुनाव में वोटों के अंतर से जीत की तुलना में आपने अपनी रणनीति से क्या मैसेज दिया है, वो ज्यादा जरूरी हो जाता है. कई बार जब रणनीति सटिक बैठती है तो नतीजे आपके फेवर में होते हैं और कई बार इसके उलट होता है. हरियाणा चुनाव का जो परिणाम आया है वो भी कई मायनों में ये बताता है कि आखिर इस राज्य में अब भविष्य की राजनीति कैसी होगी औऱ जनता अपने नेता से क्या कुछ चाहती है.
चुनाव को जीतने के लिए पार्टी के रणनीतिकारों से लेकर ग्राउंड पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की भूमिका सबसे अहम होती है. किसी पार्टी की जीत या हार के बीच का अंतर भी इन्हीं की मेहनत का नतीजा होता है. हरियाणा में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर रही है. उसकी इस जीत में पीएम मोदी से लेकर धर्मेंद्र प्रधान और सीएम सैनी से लेकर पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर की अहम भूमिका रही है. वहीं, कांग्रेस के राहुल गांधी, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के लिए ये चुनाव एक बड़ी सबक की तरह रहा है. उधर, अगर बात अगर क्षेत्रीय दलों की करें तो दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला के लिए भी ये चुनाव काफी कुछ सीखाने वाला रहा है. चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर हरियाणा चुनाव में प्रदेश की जनता ने किसे सबसे बड़ा ‘विनर’ और किसे सबसे बड़ा ‘लूजर’ साबित किया है.
ये हैं हरियाणा चुनाव के सबसे बड़े ‘विनर’

काम आई मोदी की गारंटी
हरियाणा चुनाव में प्रचार की कमान पीएम मोदी ने संभाली थी. उन्होंने इस चुनाव प्रचार की ना सिर्फ अगुवाई की बल्कि जनता को विश्वास भी दिलाया की उनकी भाजपा आने वाले समय में भी जनता के लिए वैसे ही काम करेगी जैसे वो बीते दस साल से करती आ रही है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने कांग्रेस पर भी जमकर हमला बोला था. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के लिए, परिवारवाद के लिए और झूठे वादों के लिए जानी जाती है. ऐसे में हरियाणा के भविष्य के लिए बीजेपी ही सबसे अहम है. पीएम मोदी को हरियाणा की जनता का साथ मिला और कई दशकों बाद बीजेपी ने सूबे में जीत की हैट्रिक लगाई.

धर्मेंद्र प्रधान की रणनीति भी रंग लाई रणनीति
हरियाणा में पार्टी की ऐतिहासिक जीत का काफी हद तक श्रेय बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को जाता है. हालांकि राजनीतिक जीवन में ये उनकी पहली उपलब्धि नहीं है. कई मौकों पर उन्होंने इसको साबित किया है.इस साल की शुरुआत में, ओडिशा में भाजपा को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई. यहां धर्मेंद्र प्रधान की अगुवाई में ही विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र का मसौदा तैयार हुआ. हरियाणा चुनाव में भी उनकी रणनीति पार्टी के लिए रिकॉर्ड जीत लेकर आई है.

OBC वोटर्स को नायब सिंह पर भरोसा
हरियाणा में भाजपा की जीत के पीछे ओबीसी वोटर्स का भी बड़ा रोल माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि सीएम सैनी की वजह से ही ओबीसी वोटर्स एक बार फिर बीजेपी की तरफ मुडा है. और ये एक बड़ी वजह है कि पार्टी नायब सिंह को एक बार फिर सूबे की जिम्मेदारी देने पर विचार कर रही है. अपने कम ही कार्यकाल में नायब सिंह सैनी ने मनोहर लाल खट्टर की कम मिलनसार वाली छवि को भी सुधारा. सैनी ने अपने घर के दरवाजे आम लोगों के लिए खोल दिए थे. उन्होंने जनता से अपनी समस्याएं CM आवास पर लाने के लिए कहा था. CM खुद इनका निपटारा भी करते थे. ये भी एक बड़ा फैक्टर है, जिस वजह से सैनी को BJP दोबारा हरियाणा की कमान दे रही है.

खट्टर के ‘तीर’ से चित हुई कांग्रेस
इस बार के हरियाणा चुनाव में सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का दाव भी बेहद खास रहा है. खट्टर इस चुनाव में हरियाणा में दलितों की बात करने वाले पहले नेताओं में से एक थे. खट्टर ने जब कहा था कि कांग्रेस की सरकार में राज्य के अंदर दलितों के साथ सबसे ज्यादा अत्याचार हुआ था तो उनकी इस बात को बाद में पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपनी रैलियों में जोर-शोर से उठाया था. बताया जाता है कि उनके इसी दाव से बीजेपी को दलितों का भी वोट पहले के मुकाबले ज्यादा मिला है.
बड़ी संख्या में महिलाएं जीतकर पहुंची विधानसभा
इस बार के विधानसभा में 13 महिला उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंची. हरियाणा ऐसे राज्य में महिलाओं की राजनीति में बढ़ती भागीदारी आने वाले भविष्य के लिए बेहद शुभ संकेत है. महिलाओं की राजनीति में बढ़ती भागीदारी आधी आबादी की महत्ता को भी दर्शाता है.
| साल | महिला विधायकों की संख्या |
| 1972 | 4
|
| 1977 | 4 |
| 1982 | 7 |
| 1987 | 5 |
| 1991
|
6 |
| 1996 | 4 |
| 2000 | 4 |
| 2005 | 11 |
| 2009 | 9 |
| 2014 | 13 |
| 2019 | 9 |
| 2024 | 13 |
ये हैं हरियाणा चुनाव के ‘लूजर्स’

फिकी पड़ गई राहुल गांधी की ‘जलेबी’
हरियाणा चुनाव में दो शब्दों की चर्चा सबसे ज्यादा रही. पहला- जाट और दूसरा- जलेबी. कांग्रेस ने दोनों पर बहुत जोर दिया, लेकिन ट्रेंड बताते हैं कि इससे पार्टी को कुछ खास हासिल नहीं हुआ. चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद ये साफ हो गया है कि राहुल गांधी हरियाणा की जनता को जो जलेबी खिलाना चाह रहे थे उसका स्वाद फिका हो गया है. और हरियाणा की जनता ने राहुल गांधी के तमाम वादों को झुटलाते हुए बीजेपी पर अपना भरोसा बरकरार रखा है.

भूपेंद्र सिंह हुड्डा को देने होंगे कई जवाब
चुनाव की घोषणा के बाद से ही कांग्रेस हरियाणा में दो धड़ों में बटी दिख रही थी. एक धड़ा था भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थकों को तो दूसरा था कुमारी सैलजा का. पार्टी हाईकमान ने भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सैलाज से ज्यादा तरजीह दी और जब उम्मीदवारों की सूची जारी की गई तब हुड्डा गुट के नेताओं को प्रमुखता से उम्मीदवार बनाया. लेकिन अब जब चुनाव नतीजे आए है तो पार्टी हुड्डा की तरफ देख रही है. यानी अब हुड्डा को पार्टी को कई तरह के सवालों के जवाब देने होंगे. जिनमें पार्टी की हार की वजह से लेकर जाट और दलित वोटरों को आकर्षित ना कर पाने जैसे सवाल भी शामिल होंगे.

कुमारी सैलजा भी पार्टी के लिए दलित वोटरों को नहीं जुटा सकीं
कांग्रेस की इस हार के पीछे दलित वोटरों का साथ ना मिलना भी एक बड़ी वजहों में से एक है.कहा जा रहा है कि पार्टी की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा के प्रयासों के बाद भी उतने दलित वोट पार्टी के खाते में नहीं आए जितने की उम्मीद थी. ऐसे में सवालों के घेरे में तो कुमारी सैलजा भी हैं.

एक भी सीट नहीं जीत सकी दुष्यंत चौटाला की पार्टी
दुष्यंत चौटाला की जेपीपी पिछले चुनाव में हरियाणा में किंगमेकर की भूमिका में थी. लेकिन इस बार के चुनाव में जनता ने उनकी पार्टी को सिरे से नकार दिया है. सूबे की जनता जेपीपी से इतनी नाराज दिखी कि उन्होंने दुष्यंत चौटाला को भी नहीं जिताया. इस चुनाव में दुष्यंत चौटाला खुद पांचवें स्थान पर रहे हैं.

अभय चौटाला को भी नहीं मिला जनता का आशीर्वाद
आईएनएलडी के अभय चौटाला इस बार 15000 वोटों से हार गए हैं. हालांकि, उनकी पार्टी को दो सीट जीतने में सफलता जरूर हाथ लगी है. आईएनएलडी ने जो दो सीटें जीती हैं उनमें से एक है दाबवाली और दूसरी रानिया.इस चुनाव में अभय चौटाला की हार ये साफ करती है कि जनता अब नए विकल्प तलाशने की तरफ देख रही है.
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न्यायाधीशों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि न्यायाधीशों को एक संन्यासी की तरह जीवन जीना चाहिए और घोड़े की तरह काम करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि उन्हें सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए और निर्णयों के बारे में कोई राय व्यक्त नहीं करनी चाहिए. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह मौखिक टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट की यह पीठ मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दो महिला न्यायिक अधिकारियों की बर्खास्तगी से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी.
कोर्ट ने टिप्पणी की कि न्यायपालिका में दिखावटीपन के लिए कोई जगह नहीं है. पीठ ने कहा, ‘‘न्यायिक अधिकारियों को फेसबुक का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. उन्हें निर्णयों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि कल यदि निर्णय का हवाला दिया जाएगा, तो न्यायाधीश पहले ही किसी न किसी रूप में अपनी बात कह चुके होंगे.”
पीठ ने कहा, ‘‘यह एक खुला मंच है…आपको एक संत की तरह जीवन जीना होगा, पूरी मेहनत से काम करना होगा. न्यायिक अधिकारियों को बहुत सारे त्याग करने पड़ते हैं. उन्हें फेसबुक का बिल्कुल प्रयोग नहीं करना चाहिए.”
बर्खास्त महिला न्यायाधीशों में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बसंत ने पीठ के विचारों को दोहराते हुए कहा कि किसी भी न्यायिक अधिकारी या न्यायाधीश को न्यायिक कार्य से संबंधित कोई भी पोस्ट फेसबुक पर नहीं डालनी चाहिए.
यह टिप्पणी वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल, जो न्यायमित्र हैं, द्वारा बर्खास्त महिला न्यायाधीश के खिलाफ विभिन्न शिकायतों के बारे में पीठ के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के बाद आई. अग्रवाल ने पीठ को बताया कि महिला न्यायाधीश ने फेसबुक पर भी एक पोस्ट डाली थी.
ग्यारह नवंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कथित असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण राज्य सरकार द्वारा छह महिला सिविल न्यायाधीशों की बर्खास्तगी का स्वत: संज्ञान लिया था. हालांकि, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत ने एक अगस्त को अपने पहले के प्रस्तावों पर पुनर्विचार किया और चार अधिकारियों ज्योति वरकड़े, सुश्री सोनाक्षी जोशी, सुश्री प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी को कुछ शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला किया, जबकि अन्य दो अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया.
शीर्ष अदालत उन न्यायाधीशों के मामलों पर विचार कर रही थी, जो क्रमशः 2018 और 2017 में मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा में शामिल हुए थे.
(इनपुट एजेंसियों से भी)
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अनुकूल नीतियों, कारोबारी सुगमता से बिहार अब निवेश का आकर्षक स्थल
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पटना:
विकास के लिहाज से पिछड़े राज्यों में आने वाले बिहार की तस्वीर अब बदल रही है. राज्य अब अनूकूल नीतियों तथा कारोबारी सुगमता की वजह से निवेश का आकर्षक स्थल बन रहा है. अदाणी समूह से लेकर कोका-कोला तक ने यहां अरबों डॉलर के निवेश की घोषणाएं की हैं. निवेश के लिए और भी कंपनियां यहां आने वाली हैं.
राज्य के उद्योग और पर्यटन मंत्री नीतीश मिश्रा बिहार को एक ऐसे राज्य में बदल रहे हैं, जो पूर्वी भारत में निवेशकों के लिए प्रवेश द्वार बन सकता है. उनका कहना है, बिहार की औद्योगिक क्षमता असीमित है. बिहार धारणा का शिकार रहा है. लेकिन अब यह बदल रहा है.
मिश्रा ने कहा कि राज्य निवेशकों को ब्याज छूट से लेकर राज्य जीएसटी की वापसी, स्टाम्प शुल्क छूट, निर्यात सब्सिडी और परिवहन, बिजली तथा भूमि शुल्क के लिए रियायतें प्रदान कर रहा है.
साथ ही न केवल अनुमोदन के समय बल्कि प्रोत्साहनों के वितरण में भी एकल खिड़की व्यवस्था के तहत मंजूरी दी जा रही है. उन्होंने कहा, ‘‘किसी को सचिवालय आने की जरूरत नहीं है. किसी को सरकारी कार्यालय आने की आवश्यकता नहीं है। हम जो भी वादा कर रहे हैं, उसे पूरा कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि बिहार राज्य भर के औद्योगिक क्षेत्रों में स्थित पूरी तरह से तैयार लगभग 24 लाख वर्ग फुट औद्योगिक ‘शेड’ की पेशकश कर रहा है. उसमें सभी प्रकार का बुनियादी ढांचा उपलब्ध है. यह जगह किसी भी उद्योग के लिए निर्धारित दर पर उपलब्ध है. राज्य ने उद्योग स्थापित करने के लिए 3,000 एकड़ का भूमि बैंक भी बनाया है.
उन्होंने कहा कि कानून और व्यवस्था की समस्या का समाधान किया गया है. साथ ही कोलकाता और हल्दिया में बंदरगाहों के साथ-साथ झारखंड जैसे पड़ोसी राज्यों में कच्चे माल के स्रोतों और खनिज भंडार तक पहुंचने के लिए बुनियादी ढांचे के साथ लगभग चौबीसों घंटे बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित की गयी है.
बिहार सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण, आईटी और आईटी-संबद्ध सेवाओं (आईटीईएस), कपड़ा और चमड़ा क्षेत्रों को उच्च प्राथमिकता के रूप में रखा है. उनमें से प्रत्येक में निवेश को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग नीतियां हैं. इसके अलावा, सरकार एथनॉल और बायोगैस जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर भी बड़ा काम कर रही है.
मिश्रा ने कहा कि बिहार में बदलाव का श्रेय केंद्र और राज्य के मिलकर काम करने को जाता है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली प्रगतिशील विचारधारा वाली केंद्र सरकार के साथ, क्षेत्रीय असंतुलन अब बीते दिनों की बात है. अब हर राज्य के पास मौका है.
मिश्रा ने कहा कि बिहार ने पिछले दो दशक में इस अवसर का लाभ उठाया है. एक राज्य जो लगातार कम वृद्धि दर के लिए जाना जाता था, अब राष्ट्रीय औसत से बेहतर वृद्धि दर हासिल कर रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी नीति अच्छी है और सौभाग्य से बिहार में हमारा नेतृत्व इतना अच्छा रहा है कि इन 19 साल में हमने बहुत अच्छा बुनियादी ढांचा बनाया है. सही मायने में बिहार निवेशकों के लिए तैयार है.”
बिहार की स्थिति विशिष्ट है. पूर्वी और उत्तरी भारत और नेपाल के विशाल बाजारों से निकटता के कारण बिहार को स्थान-विशेष का लाभ प्राप्त है. मूल रूप से कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाले राज्य के पास एक बड़ा कृषि और पशु उत्पादन आधार है. यह कृषि आधारित यानी खाद्य प्रसंस्करण, रेशम और चाय से लेकर चमड़े और गैर-धातु खनिजों तक कई उद्योगों के लिए कच्चे माल की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति करता है.
इसके अलावा, पानी की कोई समस्या नहीं है और पर्याप्त संख्या में सस्ता श्रम उपलब्ध है. मिश्रा ने कहा, ‘‘ये हमारी मुख्य ताकत है और आने वाले दिनों में, बिहार में भारत के पूरे पूर्वी हिस्से के लिए वृद्धि का प्रमुख इंजन बनने की क्षमता है. यह बिहार का समय है.”
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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काल बना स्पीड ब्रेकर, हवा में उछली स्कूटर, सड़क पर घिसट गया शख्स… देखिए हैरान करने वाला VIDEO
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नई दिल्ली:
देहरादून में घंटाघर के सामने बिना चिन्ह वाले स्पीड ब्रेकर से टकराने के बाद एक स्कूटर सवार हवा में उछला और इसके बाद वह सड़क पर गिरा. वह और उसकी स्कूटर कई मीटर तक सड़क पर सरकती हुई आगे गई. गनीमत रही कि स्कूटर सवार को कोई गंभीर चोट नहीं लगी. स्पीड ब्रेकर पर ड्राइवरों को सचेत करने के लिए उनकी मार्किंग नहीं की गई है जिसके कारण वाहन चालकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
NDTV को मिले घटनास्थल के फुटेज में स्कूटर मध्यम गति से स्पीड ब्रेकर की ओर बढ़ती हुई दिख रही है. जैसे ही स्कूटर सवार स्पीड ब्रेकर से टकराता है, स्कूटर अप्रत्याशित रूप से हवा में उछल जाता है. वाहन चालक उछलकर नीचे गिर जाता है. वह कुछ देर रुकने के बाद उठता है और वहां से चला जाता है.
स्पीड ब्रेकर वाहनों की गति को नियंत्रित रखने के लिए बनाए जाते हैं, लेकिन इनकी डिजाइन में दोषों के कारण यही स्पीड ब्रेकर कई दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं. देहरादून के इस स्पीड ब्रेकर की स्पष्ट मार्किंग नहीं की गई है. इसके अलावा यह अत्यधिक ऊंचा भी है. इससे चार पहियों वाले वाहनों के लिए इसे पार करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
उचित संकेतक और मार्किंग की कमी के कारण ड्राइवरों के लिए स्पीड ब्रेकर का अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है. इससे यहां हादसे हो रहे हैं.
इस स्पीड ब्रेकर के कारण कथित तौर पर सात दुर्घटनाएं हुई हैं, जिनमें तीन साल के एक बच्चे सहित दो लोग घायल हुए हैं.
स्पीड ब्रेकर के कारण हादसे का यह पहला मामला नहीं है. अक्टूबर में गुरुग्राम में भी ऐसी ही एक घटना हुई थी. तब गोल्फ कोर्स रोड पर एक तेज रफ़्तार BMW कार नए बनाए गए स्पीड ब्रेकर पर से उछल गई थी.
कैमरे में कैद हुई इस घटना में कार जमीन से काफी ऊपर उछलती हुई दिखी थी. कार उस स्थान से करीब 15 फीट दूर जाकर गिरी थी. उसी वीडियो में दो ट्रक भी बिना किसी निशान वाले स्पीड ब्रेकर से टकराकर हवा में उछलते हुए देखे गए थे.
इस घटना को लेकर कुछ दिनों बाद सोशल मीडिया पर हुई तीखी प्रतिक्रिया पर अधिकारियों ने कार्रवाई की थी. गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (GMDA) ने ड्राइवरों को चेतावनी देने के लिए “आगे स्पीड ब्रेकर है” लिखा हुआ एक साइनबोर्ड लगवाया. उन्होंने स्पीड ब्रेकर की थर्मोप्लास्टिक व्हाइट पेंट से मार्किंग भी कराई थी. इस तरह पेंट करने से विशेष रूप से रात में स्पीड ब्रेकर साफ दिखाई देता है.
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